लोलार्क कुंड वाराणसीः एक डुबकी से ही सारी मन्नतें होती हैं पूरी!

लोलार्क कुंड वाराणसीः एक डुबकी से ही सारी मन्नतें होती हैं पूरी!

इसे वाराणसी बोलिए या काशी या बनारस। तीनों ही नामों से जाना जानेवाला यह भारत का एक ऐसा शहर है, जहां लोग आस्था के कुण्ड में डुबकी लगाकर अपने जीवन को पवित्र करने आते हैं। वैसे तो अपने देश में हिंदू धर्म की आस्था के अनेक केंद्र कई ऐतिहासिक तीर्थस्थलों और मान्यतायों के रूप में विद्यमान हैं, लेकिन वाराणसी शहर हिंदुओं का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां पहुंचना लोग अपना सौभाग्य मानते हैं। यहां गंगा जैसी पवित्र नदी बहती है, जिसके किनारे 100 से भी अधिक घाट बने हैं। गंगा नदी के इन्हीं घाटों में प्रचलित तुलसी घाट के निकट एक प्राचीन कुंड है, जहां मान्यता है कि इसमें एक डुबकी लगा लेने से ही सारी मन्नतें पूरी हो जीती हैं। काशी के भदैनी में स्थित इस कुंड को लोलार्क कुंड(Lolark Kund) के नाम से जाना जाता है।

मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण सतयुग में हुआ था, जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है और कुछ समय बाद इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने कीमती पत्थरों से सजवाकर इस कुंड का पुनः जीर्णाेद्धार भी करवाया था। लोलार्क कुंड(Lolark Kund) में भादो मास में लोलार्क षष्ठी त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल इस कुंड में डुबकी लगाने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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आज हम इस लेख में इसी लोलार्क कुंड वाराणसी के इतिहास, महत्व और लोलार्क पष्ठी 2023 स्नान से जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं। इससे पहले कि हम लोलार्क कुंड के महत्व और स्नान की विधि के बारे में बात करें, हम पहले लोलार्क कुंड और इसके इतिहास के बारे में कुछ चर्चा कर लेते हैं, ताकि हमें पता चल सके कि लोलार्क कुंड काशी का प्रसिद्ध आस्था केंद्र क्यों है?

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लोलार्क कुंड क्या है? ( Lolark Kund )

वाराणसी में स्थित लोलार्क कुंड एक ऐसा कुंड है, जहां एक बार सच्ची श्रद्धा से स्नान कर लेने से ही सारी मन्नतें पूरी हो जाती हैं। इस लोलार्क कुंड(Lolark Kund) में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनों दिशाओंसे 35 लंबी सीढ़ियां नीचे उतरती हैं। कुंड के पूर्वी दिशा में एक दीवार है, जिससे पानी अंततः गंगा नदी में जाकर मिलत है। भूरे लाल पत्थरों से निर्मित अद्भुत वास्तुकला वाले इस लोलार्क कुंड का दूसरा नाम सूर्य कुंड भी है, क्योंकि वाराणसी में सूर्याेदय होने पर सूर्य की पहली किरण इस कुंड में ही पड़ती है। लोलार्क का मतलब ही होता है कांपता हुआ सूरज। कुंड के पानी में सूरज की किरणें पड़ने से ठीक ऐसा ही महसूस होता है। 35 खड़ी सीढ़ियों से कोई भी व्यक्ति 17 मीटर गहराई तक पहुंचने के बाद ही इस लोलार्क कुंड में स्नान के लिए उतर सकता है।

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लोलार्क कुंड का इतिहास क्या है? ( History of Lolark Kund )

लोलार्क कुंड वाराणसी सतयुग, त्रेता युग से लोगों की मन्नतें पूरी करता आ रहा है। लोलार्क कुंड के नाम के पीछे एक ऐतिहासिक मान्यता है। इस मान्यता के अनुसार एक विद्युन्माली राक्षस, जो शिव भक्त था, उसे सूर्यदेव ने परास्त किया था। अपने भक्त की हार से क्रोधित होकर भगवान शिव हाथ में त्रिशूल लेकर सूर्य देव की ओर जा रहे थे। भगवान शिव से घबराकर भागते हुए सूर्यदेव अपने रथ के साथ पृथ्वी पर इसी स्थान पर गिरे थे। तब से इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ा।

इस लोलार्क कुंड में स्नान करने से सारी मन्नतें पूरी हो जाती हैं और त्वचा से जुड़े रोग खत्म हो जाते हैं। लोलार्क कुंड के लिए लोगों की इतनी श्रद्धा के पीछे भी एक लोक मान्यता है। इस मान्यता के अनुसार पश्चिम बंगाल के एक राजा चर्मरोग से पीड़ित थे और उनकी कोई संतान भी नहीं थी। एक ऋषि के बताने पर उन्होंने भाद्रपद्र की शुक्ल पक्ष पष्ठी के दिन लोलार्क कुंड में अपनी पत्नी के साथ स्नान किया। लोलार्क कुंड में उन दोनों के स्नान करने से राजा को न केवल अपने चर्म रोग से मुक्ति मिली, बल्कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई।

राजा की मन्नत पूरी होने के बाद से ही लोलार्क कुंड में भाद्रपद्र की शुक्ल पक्ष पष्ठी के दिन लोलार्क पष्ठी पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य की किरणों के पानी में पड़ने से ये अत्यंत प्रभावी हो जाती हैं, जिससे संतान के जन्म का योग बनता है।

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काशी के लोलार्क कुंड में स्नान करने का महत्व क्यों है?

काशी के लोलार्क कुंड में लोलार्क छठ या ललई छठ के नाम से मनाया जाने वाला पर्व का श्रद्धालुओं के बीच काफी महत्व है। काशी में लोलार्क छठ के अवसर पर लोलार्क कुण्ड में मनचाही मन्नत पूरी होती है, लेकिन इसका विशेष महत्व निःसंतान दंपतियों के संतान की चाहत को पूरी करने के की वजह से माना गया है। साथ ही पुत्र की चाहत रखने वाले दंपत्ति को भी इस कुंड में स्नान करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इसके अलावा साधु संन्यासी के साथ कई और लोग भी अपने पाप धोने और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए इस कुंड में स्नान करते हैं। चर्म रोग, कुष्ठ रोग जैसी त्वचा से जुड़ी कई बीमारियां भी इस कुंड में स्नान करने से ठीक हो जाती हैं। वंश वृद्धि की कामना लिए लोलार्क छठ के पर्व पर पूरी आस्था के साथ भारत के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं।

यहां लोलार्केश्वर महादेव का मंदिर भी है। इस कुण्ड में स्नान के बाद श्रद्धालु लोलार्केश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करके अपनी मन्नत मांगते हैं। इस कुण्ड और पर्व को लेकर लोगों के मन में बहुत ही ज्यादा आस्था और विश्वास है। ललई छठ के दिन लोलार्क कुंड में स्नान कर पाना ही भाग्य की बात है।

इस लोलार्क कुंड में प्रतिवर्ष संतान की मनोकामना लिए कई दंपत्ति आते हैं, तो कई दंपत्ति ऐसे भी होते हैं, जिनकी संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वे अपने संतान के मुंडन के साथ ईश्वर का धन्यवाद करने भी यहां आते हैं। कई महिलाएं अपने संतान की रक्षा के लिए भी यहां स्नान करती हैं। यहां बच्चों पर लगे बुरे संकट जैसे जादू-टोना आदि का भी निवारण होता है। कई लोग पारिवारिक सुख और संन्यासी लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए भी यहां स्नान करते हैं।

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लोलार्क कुंड में स्नान करने की पूरी विधि क्या है? ( Lolark Kund Vrat )

लोलार्क षष्ठी के पूर्व रात्रि 12ः30 बजे कुंड पूजन कार्य समाप्त होने के बाद लोलार्क कुंड में सुबह के शुभ मुहूर्त यानि सूर्याेदय के दो घंटे पहले से स्नान की शुरुआत होती है, जो सूर्यास्त तक चलती है। इस मुहूर्त के बीच ही बिना अन्न-जल ग्रहण किए स्नान करने से उत्कृष्ट लाभ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति या दंपत्ति या महिला लोलार्क कुंड में स्नान करके अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहती है, उसे इसी मुहूर्त में स्नान करना होता है और स्नान के दौरान भगवान सूर्य से कामना करनी होती है। स्नान के बाद उन्हें लोलार्केश्वर महादेव की आराधना भी करनी होती है।

इस पूरे पूजा विधान के दौरान स्नान करने वाले व्यक्ति को स्नान के दौरान पहने हुए वस्त्र को कुंड में ही छोड़ना होता है। स्नान के पश्चात कोई एक फल खरीद कर उसमें सुई चुभा दी जाती है। इसे सूर्य की किरणों का प्रतीक माना जाता है। जिस फल पर सुई चुभाई जाती है, उस फल का त्याग जीवन भर के लिए करना पड़ता है। साथ ही महिलाओं को स्नान के दौरान अपने पहने हुए श्रृंगार के सामान भी कुंड स्थल में ही छोड़ने का प्रावधान है।

2023 में लोलार्क षष्ठी कब है? ( Lolark Kund Snan 2023 date )

लोलार्क षष्ठी को ललई छठ, लोलार्क छठ, स्कंद छठ, सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। लोलार्क कुंड का स्नान कब है 2023? लोलार्क षष्ठी 2023 में भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्टी तिथि दिन गुरुवार अनुराधा नक्षत्र दिनांक 21 सितम्बर को मनाया जाएगा। इस पर्व में पूरे देश से बड़ी मात्रा में श्रद्धालु स्नान करने पहुंचते हैं। इसलिए यहां स्नान के लिए कतार एक-दो दिन पहले से ही लगनी शुरू हो जाती है। यह कतार 1 से 2 किलोमीटर लंबी दूरी तक भी हो सकती है। लोलार्क षष्ठी पर्व आने के पहले से ही पुरे भाद्रपद महीने में यहां लक्खा मेला लगता है।

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लोलार्क कुंड आने का सही समय कब है? ( Lolark Kund visit best time )

लोलार्क कुंड आने का सही समय तो सितम्बर महीने लोलार्क षष्ठी के दिन को ही माना गया है। यहां पर लगने वाले लक्खा मेला को देखने के लिए जो श्रद्धालु यहां भादो माह (अगस्त-सितंबर) में आते हैं, वे भी लोलार्क षष्ठी पर्व की रौनक को देख सकते हैं। हालांकि अन्य दिनों में भी इस कुंड में स्नान करने से आपको आत्मशांति प्राप्त होती है।

काशी के लोलार्क कुंड में कैसे पहुंचे? (How to reach Lolark Kund )

भारत के किसी भी कोने से फ्लाइट, ट्रेन या बस के माध्यम से काशी धाम पहुंचने के बाद यहां से अस्सी रोड के लिए ऑटो या रिक्शा मिलती हैं। जो कई घाटों और गलियों से गुजरते हुए आपको तुलसी घाट तक पहुंचाते हैं। एक बार तुलसी घाट पहुंचने के बाद सीढ़ियों के द्वारा लोलार्क कुंड तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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तो दोस्तों आज के इस लेख में हमने आपको लोलार्क कुंड वाराणसी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई है। हमें उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि हां, तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दें और इसे अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर भी शेयर करना न भूलें।

Team Varanasi Mirror

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