BHU में राष्ट्रीय संगोष्ठी: शिवत्व के महत्व पर हुई चर्चा
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी कि BHU में भारतीय संस्कृति के अलग-अलग पहलुओं से लोगों को परिचित कराने के लिए समय-समय पर कई कार्यक्रम होते रहते हैं। इन्हीं कार्यक्रमों की कड़ी में बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र में दो दिनों की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें प्रो मालिनी अवस्थी एवं विश्वविद्यालय के रेक्टर प्रो विजय कुमार शुक्ला समेत कई दिग्गजों ने व्याख्यान दिए। बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र और हैदराबाद के हिंदी अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में इसका आयोजन हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अमित कुमार पांडे ने किया और उन्होंने ही धन्यवाद ज्ञापन भी किया।
शिवत्व पर डाला प्रकाश
BHU में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के तौर पर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के संकाय प्रमुख प्रो कमलेश झा मौजूद थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वेद प्रस्थान, आगम प्रस्थान और तर्क प्रस्थान में संपूर्ण वाङ्गमय विभाजित है। साक्षात शिव की उपासना और उनके विश्वरूप का वर्णन इनमें देखने के लिए मिलता है। विजय कुमार शुक्ल ने अपने संबोधन में बताया कि शिवत्व को ही केंद्र में रखते हुए अधिकतर पुराणों की रचना की गई है। उन्होंने शिवत्व के भारतीय उपासना पद्धति, आस्था, संगीत, नृत्य, कला, पर्व-त्योहार और कला जैसे सभी क्षेत्रों में समाहित होने की बात कही।
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भगवान शिव का परिवार
BHU में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में श्री शुक्ल ने उपासना के अलग-अलग आयामों के साथ वेदों एवं उपनिषदों में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों के बारे में भी बताया। भारत अध्ययन केंद्र की सेंटेनरी चेयर प्रोफेसर मालिनी अवस्थी ने भगवान शिव को भारत की अरण्य संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक बताया। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान शिव का इस लोक में सबसे ज्यादा महत्व है और भगवान शिव का परिवार सामंजस्य का सबसे बढ़िया उदाहरण है। प्रोफेसर मालिनी ने कहा कि भगवान शिव गृहस्थ होने के साथ-साथ जोगी और आशुतोष होने के साथ-साथ प्रलयंकारी भी हैं।
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देवों के देव महादेव
BHU की राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रोफेसर मालिनी अवस्थी ने भगवान शिव को देवों के देव और महादेव बताते हुए उन्हें अनादि और मूल भी बताया। संगोष्ठी में आए हुए अतिथियों का स्वागत भारत अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो सदाशिव कुमार द्विवेदी ने किया और डॉ टी गणेशन ने इस दौरान आभार व्यक्तव्य दिया।
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