लौंग लता बनारस – स्वाद और रस का अनूठा संगम !
बनारस.. स्वाद और संस्कृति का तिलिस्म जहाँ बसता हो, बनारस.. बना रहे जिसका रस.. फिर वो चाहे संगीत का हो, शिक्षा का हो या फिर जिह्वा का.. ऐसे शहर की वक़्तनुमा इन संकरी घुमावदार गलियों का फेरा लगाते हुए आपको मिठाइयों की सजी दुकानों पर काफी कुछ देखने को मिलेगा… लेकिन इन्हीं दुकानों पर एक मिठाई ऐसी है जो अपने रूप रंग से तो आपका ध्यान कतई अपनी ओर नहीं खींचेगी… लेकिन उसका नाम सुन कर आप जरूर रुक जायेंगे… नाम ऐसा जिस से न उसके आकार प्रकार का पता लगे और ना ही स्वाद का.. ये है बनारस की मशहूर लौंग लता ( Laung Lata)।
स्वाद से भरपूर लौंग लता मिठाई का इतिहास
लौंग लता ( Laung Lata) मिठाई को ये रंग-रूप, नाम कैसे मिला ये इतिहास के पन्नों में कहीं दर्ज़ नहीं है लेकि गँगा की लहरों पर तैरती कहानियों को अगर सुने तो वो बताएंगी की दाराशिकोह के गुरु पंडित जगन्नाथ मुग़ल शहज़ादी लवंगी के प्रेम में पड़ गए, लवंगी के साथ विवाह कर पंडित जगन्नाथ बनारस आ गए लेकिन सामाजिक बहिष्कार के चलते उन्होंने लवंगी के साथ गंगा में अपने प्राणों की आहुति दे दी। कहा जाता है की इस प्रेम की मृत्यु का भार अपने सीने से उतारने के लिए बनारस ने लवंगी को लौंग लता के रूप में सदा- सदा के लिए अपना लिया।
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लौंग लता ( Laung Lata) रेसिपी
चाशनी में पगी इस मिठाई को बनाना ज्यादा मुश्किल भी नहीं.. बनारस के हलवाइयों की पुष्ट हथेलियाँ मैदे में घी का मोयन डाल कर गर्म पानी से उसे गूँधती हैं.. फिर खोये को हल्की आँच पर भूना जाता है और उसमे मिलाया जाता है नारियल, इलायची पाउडर, खसखस, ड्राई फ्रूट्स और ढेर सारा प्यार.., मैदा गूँधा गया, भरावन तैयार अब बनाई जाती है एक तार की चाशनी।
साफ़ हाथों से बड़ी तन्मयता से मैदे की छोटी-छोटी लोइयों को बेला जाता है और उसमे करीब एक चम्मच जितना भरावन रख कर उसे लिफाफे की तरह बंद कर दिया जाता है। फिर जिस तरह प्राण त्यागते समय लवंगी पंडित जगन्नाथ की गोद में बैठी थीं वैसे ही इस लिफाफे के बीचो-बीच एक लौंग को बिठा दिया जाता है, अब इसे गर्म घी में तला जाता है और कड़ाही से निकलते ही चाशनी में 15 -20 मिनट के लिए डुबो दिया जाता है। इसे गर्म या रूम टेम्प्रेचर पर सर्व किया जाता है।
सात वार- नौ त्यौहार वाले बनारस को सात वार 56 मिष्ठान वाली नगरी भी कहा जा सकता है, अगर इन 56 मिष्ठानों का दरबार लगाया जाए तो इस दरबार की महारानी लौंग लता ( Laung Lata) को कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी
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लौंग लता- नाम अनोखा तो स्वाद भी अनोखा
आह! जिसका वर्णन ही इतना मोहक हो जब वो जिह्वा पर रखी जाएगी तो अद्भुत स्वाद होगा उसका। हालाँकि लौंग लता ( Laung Lata) आपको कमोबेश बनारस की हर मिठाई की दूकान पर मिल जाएगी लेकिन इसके बेहतरीन स्वाद के लिए आप को सिगरा पर मधुर मिलन, भोजूबीर चौराहे पर या गौदोलिया पर केसीएम के बगल वाली गली में जाना चाहिए। बड़ी पियरी की गली में और लंका चौराहे पर पहलवान की दूकान पर भी आपको वही बनारसी स्वाद मिलेगा जो आपको खींच कर बनारस तक लाया है।
हाँ, अगर आपको लौंग लता ( Laung Lata) का मॉर्डर्न स्टाइल ट्राई करना है तो आप कचहरी पर राजश्री की सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं, जहाँ ये आपको साइज़ में काफी छोटी और कम चाशनी वाली मिल जाएगी। यहाँ लौंगलता आपको 400/- किलो मिलती है।
पारम्परिक लौंगलता में 1500 से 2500 तक की कैलॉरी होती है तो इसे आँख बंद करके बिना कुछ सोचे उदरस्थ करना ही ठीक है।
कही 12 रुपये तो कहीं 15 रुपये पीस के हिसाब से मिलने वाली लौंगलता को खाने का भी अपना एक शऊर है, जो आपने इसे गर प्लेट में रख कर चम्मच से खाया तो यकीन जानिए पूरा बनारस आपसे नाराज़ हो उठेगा, इसे तो पत्तल के दोने में रख कर उँगलियों से तोड़ कर खाने में ही लुत्फ़ है।
वैसे तो बनारस की इस लौंग लता ने नेपाल, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक अपने पाँव पसारे हुए हैं.. लेकिन बनारस की लौंग लता के लिए कहा जाता है इस जीवन दर्शन को दूर से क्या देखना.. मुँह में घुला हुआ पान भी थूक कर लोग लौंग लता ( Laung Lata) के लिए हाथ बढ़ा देते हैं।
गलियारों के इस नायाब शहर बनारस की ये मिठाई सदियों तक हमे भूलने नहीं देगी कि शिव के त्रिशुल पर बसी इस नगरी को जब बनारस कह कर पुकारा गया तो इस नाम में सिर्फ संगीत या शिक्षा के रस को ही नहीं सहेजा जा रहा था वरन आने वाली पीढ़ियों के लिए यहाँ की मिठाइयों का रस भी सदा-सदा के लिए सहेज लिया गया था।